Here's a collection of some really thought provoking statements made by my 3 year old son.
1. This happened around an year back. He knows one sardar boy in the locality-'Akhand'. He saw one more sardar boy for the first time, and his reaction was "See Mamma, 2-2 akhands."
2. He wanted to go cycling in the night and presented his wish before his dad. Tired dad said " hum kal jaayenge. Aaj mein thak gaya hoon." (We will go tomorrow. I m very tired today.) The good boy agreed. But this went on for 2 days. On the third day he again wanted to go. Without waiting for a response, his next statement was " Aaj 'kal' ho gaya hai papa. No cheating." Did someone say 'tomorrow never comes'?
3. My sister-in-law had to undergo some minor surgery. She was resting in her room. Dvij's question- " Why is maami lying on the bed? Is she getting repaired? "
4. I took him in my lap and told- " Dvij i want some energy. Give me a hug." He got up. Went back, took a long run and came and jumped on me , giving a hug. "See mamma, i brought so much energy for u."
Friday, September 24, 2010
Tuesday, August 17, 2010
A lost love
Soulmates- they were,
He came into her life as a breath of fresh air.
It was the start of a carefree affair.
Their love was deep, like a deep blue sea.
But soon the tides turned and one could see.
Their love was not meant to be.
He stayed aloof,
Saying it was for her own good.
He cared, but he never dared.
He did it for her, that's what he said.
Was it true? Or was he through?
What was the reason he let her depart?
No exchange of words, not a single touch.
Just a mere good bye
And souls were torn apart.
He came into her life as a breath of fresh air.
It was the start of a carefree affair.
Their love was deep, like a deep blue sea.
But soon the tides turned and one could see.
Their love was not meant to be.
He stayed aloof,
Saying it was for her own good.
He cared, but he never dared.
He did it for her, that's what he said.
Was it true? Or was he through?
What was the reason he let her depart?
No exchange of words, not a single touch.
Just a mere good bye
And souls were torn apart.
Wednesday, June 30, 2010
आम इंसान
"आपने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी पापा"।
सुहाना के ये शब्द सुनकर राधा बुआ के कदम वहीँ रुक गए।
"पापा आपसे बेहतर मुझे और कौन जानता है? मेरी आदतों से आप अच्छी तरह वाकिफ हैं। मेरी पसंद - नापसंद जानते हैं। मेरी शादी करते वक़्त कम से कम मेरी ज़रूरतों का तो ख्याल किया होता। आपने मेरे लिए अथर्व को चुना? ना उसके पास अच्छी पर्सनालिटी है ना ही कोई स्टाइल। मेरी पसंद से बिलकुल अलग है वो, बिलकुल एक आम इन्सान। आपने कैसे सोच लिया मैं उसके साथ खुश रहूंगी? ना उसके पास हमारी तरह बड़ा घर है ना कार। एक स्कूटर है जो उसे जान से प्यारा है। और ये घर? मुझे इतने लोगों के बीच रहने की आदत तो है नहीं। कितनी भीड़ है इस घर में। कैसे adjust करूँ मैं खुद को यहाँ पर? अथर्व जैसे आम आदमी से मेरी शादी करके आपने अच्छा नहीं किया पापा।"
सुहाना के पापा नम आँखों से उसे देखते रहे। कैसे समझाते वो अपनी बेटी को? वो जानते थे की सुहाना बुरी नहीं है, साफ़ दिल की है। लेकिन बिन माँ की बेटी को उन्होंने बड़े लाड से पाला था, कभी किसी बात की रोक टोक नहीं थी उसे। शायद अपनी बेटी को थोड़ी सयानी बनाने के लिए ही उन्होंने इस प्यारे से परिवार में उसकी शादी की थी। लेकिन सुहाना अभी नादान थी। अथर्व और उसके घर वालों की अच्छाई उसने समझी नहीं थी। और फिर उन्होंने तो सुहाना को अथर्व की तस्वीर दिखाई थी। उसने खुद हाँ कहा था शादी के लिए। बस पापा ये नहीं जानते थे की बॉय फ्रेंड से झगडा होने पर सुहाना ने गुस्से में बिना तस्वीर देखे ही शादी के लिए हाँ कर दी थी।
पापा बस इतना ही कह पाए " सुहाना अथर्व को जान ने की कोशिश करो। हर आम इंसान में कोई ख़ास बात होती है।अथर्व में भी है। उसे मैंने अच्छे से जाना है, परखा है। "
पापा मायूस होकर वहां से चले गए। चाय- नाश्ता देने आई राधा बुआ भी उलटे पैर लौट गई। अपने लाडले ईशान के बारे में ये सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा था। अभी दो दिन भी नहीं हुए थे अथर्व की शादी को। इतने दिन में ही सुहाना ने एक राय बना ली थी अथर्व के बारे में।
बुआ से रहा नहीं गया। वो बड़ी माँ के पास जाकर रोने लगी। सारी बातें उन्हें बता दी। बड़ी माँ समझदार थी। वो जानती थी सुहाना पैसे वाले घर में पली- बढ़ी है, उसका रहन सहन उनसे बिलकुल अलग है। उसे थोड़े वक़्त और थोड़े प्यार की ज़रुरत है। उन्होंने राधा बुआ को थोड़ी धीरज रखने के लिए कहा और सुहाना के कमरे की तरफ चल पड़ी। सुहाना भी रो रही थी। वो जानती थी बुआ ने सब सुन लिया है। "आप भी मुझे डांटने आई है ना बड़ी माँ?"
" नहीं बेटा। माँ बस अपने बच्चों को समझाती है। तुम्हे अथर्व पसंद नहीं ना सही। लेकिन किसी इंसान को जाने बिना सिर्फ उसके दिखावे पर से उसके बारे में राय बनाना सही तो नहीं है ना। बेटा कोई इंसान आम नहीं होता। हर आम से आम इंसान भी किसी ना किसी के लिए ख़ास होता है। हम राह चलते रोज़ कितने ही लोगों को देखते हैं। कभी उन्हें मुड़कर दोबारा देखते भी नहीं है। वो हमारे लिए आम है लेकिन उसके घर कोई है जिसके लिए वो ख़ास है। घर पर कोई नज़रें गडाए उनका इंतज़ार कर रहा होता है। बच्चे अपने पापा को ना जाने कितनी कहानियां सुनाना चाहते हैं। बीवी जाने कबसे तैयार हो कर पति की राह देखती है। माँ-बाप बेटे के देर से घर लौटने पर कितने परेशान हो जाते हैं। हर किसी के लिए वो बन्दा बड़ा ख़ास है।एक औरत जो दिखने में भले ही कोई परी ना हो उसका पूरा घर उसके इर्द- गिर्द घूमता है। ऑफिस में भी वो अपना काम पुरे चाव से करती है। सब कुछ संभाल लेती है। ऐसे हर इंसान अपने आप में ख़ास है बेटा। बस उसे देखने की लिए नज़र चाहिए। तुम्हारे पास भी वो नज़र है। बस अपनी आँखें खोलो और अपने आस पास जो हो रहा है उसे देखो, समझो। ये सब तुम्हे अपना सा लगेगा। अथर्व हम सबका लाडला है। और तुम भी, हम सबकी प्यारी छोटी सी बहु। थोड़ी तुम कोशिश करना, थोडा हम साथ देंगे। सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा। ऐसा करोगी ना बेटा?"
इतने प्यार भरे शब्द सुनकर सुहाना बड़ी माँ से लिपट गई। ज़िन्दगी में पहली बार उसे माँ का प्यार महसूस हुआ। इस घर को अपना बनाने की पूरी कोशिश करने की उसने ठान ली.
P.S. Inspired by a tv serial.
सुहाना के ये शब्द सुनकर राधा बुआ के कदम वहीँ रुक गए।
"पापा आपसे बेहतर मुझे और कौन जानता है? मेरी आदतों से आप अच्छी तरह वाकिफ हैं। मेरी पसंद - नापसंद जानते हैं। मेरी शादी करते वक़्त कम से कम मेरी ज़रूरतों का तो ख्याल किया होता। आपने मेरे लिए अथर्व को चुना? ना उसके पास अच्छी पर्सनालिटी है ना ही कोई स्टाइल। मेरी पसंद से बिलकुल अलग है वो, बिलकुल एक आम इन्सान। आपने कैसे सोच लिया मैं उसके साथ खुश रहूंगी? ना उसके पास हमारी तरह बड़ा घर है ना कार। एक स्कूटर है जो उसे जान से प्यारा है। और ये घर? मुझे इतने लोगों के बीच रहने की आदत तो है नहीं। कितनी भीड़ है इस घर में। कैसे adjust करूँ मैं खुद को यहाँ पर? अथर्व जैसे आम आदमी से मेरी शादी करके आपने अच्छा नहीं किया पापा।"
सुहाना के पापा नम आँखों से उसे देखते रहे। कैसे समझाते वो अपनी बेटी को? वो जानते थे की सुहाना बुरी नहीं है, साफ़ दिल की है। लेकिन बिन माँ की बेटी को उन्होंने बड़े लाड से पाला था, कभी किसी बात की रोक टोक नहीं थी उसे। शायद अपनी बेटी को थोड़ी सयानी बनाने के लिए ही उन्होंने इस प्यारे से परिवार में उसकी शादी की थी। लेकिन सुहाना अभी नादान थी। अथर्व और उसके घर वालों की अच्छाई उसने समझी नहीं थी। और फिर उन्होंने तो सुहाना को अथर्व की तस्वीर दिखाई थी। उसने खुद हाँ कहा था शादी के लिए। बस पापा ये नहीं जानते थे की बॉय फ्रेंड से झगडा होने पर सुहाना ने गुस्से में बिना तस्वीर देखे ही शादी के लिए हाँ कर दी थी।
पापा बस इतना ही कह पाए " सुहाना अथर्व को जान ने की कोशिश करो। हर आम इंसान में कोई ख़ास बात होती है।अथर्व में भी है। उसे मैंने अच्छे से जाना है, परखा है। "
पापा मायूस होकर वहां से चले गए। चाय- नाश्ता देने आई राधा बुआ भी उलटे पैर लौट गई। अपने लाडले ईशान के बारे में ये सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा था। अभी दो दिन भी नहीं हुए थे अथर्व की शादी को। इतने दिन में ही सुहाना ने एक राय बना ली थी अथर्व के बारे में।
बुआ से रहा नहीं गया। वो बड़ी माँ के पास जाकर रोने लगी। सारी बातें उन्हें बता दी। बड़ी माँ समझदार थी। वो जानती थी सुहाना पैसे वाले घर में पली- बढ़ी है, उसका रहन सहन उनसे बिलकुल अलग है। उसे थोड़े वक़्त और थोड़े प्यार की ज़रुरत है। उन्होंने राधा बुआ को थोड़ी धीरज रखने के लिए कहा और सुहाना के कमरे की तरफ चल पड़ी। सुहाना भी रो रही थी। वो जानती थी बुआ ने सब सुन लिया है। "आप भी मुझे डांटने आई है ना बड़ी माँ?"
" नहीं बेटा। माँ बस अपने बच्चों को समझाती है। तुम्हे अथर्व पसंद नहीं ना सही। लेकिन किसी इंसान को जाने बिना सिर्फ उसके दिखावे पर से उसके बारे में राय बनाना सही तो नहीं है ना। बेटा कोई इंसान आम नहीं होता। हर आम से आम इंसान भी किसी ना किसी के लिए ख़ास होता है। हम राह चलते रोज़ कितने ही लोगों को देखते हैं। कभी उन्हें मुड़कर दोबारा देखते भी नहीं है। वो हमारे लिए आम है लेकिन उसके घर कोई है जिसके लिए वो ख़ास है। घर पर कोई नज़रें गडाए उनका इंतज़ार कर रहा होता है। बच्चे अपने पापा को ना जाने कितनी कहानियां सुनाना चाहते हैं। बीवी जाने कबसे तैयार हो कर पति की राह देखती है। माँ-बाप बेटे के देर से घर लौटने पर कितने परेशान हो जाते हैं। हर किसी के लिए वो बन्दा बड़ा ख़ास है।एक औरत जो दिखने में भले ही कोई परी ना हो उसका पूरा घर उसके इर्द- गिर्द घूमता है। ऑफिस में भी वो अपना काम पुरे चाव से करती है। सब कुछ संभाल लेती है। ऐसे हर इंसान अपने आप में ख़ास है बेटा। बस उसे देखने की लिए नज़र चाहिए। तुम्हारे पास भी वो नज़र है। बस अपनी आँखें खोलो और अपने आस पास जो हो रहा है उसे देखो, समझो। ये सब तुम्हे अपना सा लगेगा। अथर्व हम सबका लाडला है। और तुम भी, हम सबकी प्यारी छोटी सी बहु। थोड़ी तुम कोशिश करना, थोडा हम साथ देंगे। सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा। ऐसा करोगी ना बेटा?"
इतने प्यार भरे शब्द सुनकर सुहाना बड़ी माँ से लिपट गई। ज़िन्दगी में पहली बार उसे माँ का प्यार महसूस हुआ। इस घर को अपना बनाने की पूरी कोशिश करने की उसने ठान ली.
P.S. Inspired by a tv serial.
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