Wednesday, August 13, 2014

Time heals

वक्त की परत चढ़ती गई
यादें धुँधली होती गई

दिन - ब -दिन की भाग दौड मे
भीगी संवेदना सूखती गई

दरिया के मौजो से जैसे
रेत की लिपि मिटती गई

कहीं आग जलती थी अंदर
धुआँ नहीं आता बाहर

जैसे लावा धरती के नीचे
शीतल हवाएँ उसके ऊपर

कहीं जलता है ज्वालामुखी
जो कर जाए धरती को सूखी

वक़्त कभी वो जगह न दिखाए
जहाँ आग बाहर आ जाए

पृथ्वी की परतों के जैसे
वक़्त की परत बस चढ़ती जाए
शीतलता फैलाती जाए